जुस्तजू भाग --- 20
तेरी आरजू, तेरी जुस्तजू।
तुझपे कुर्बान मेरी जिंदगी।।
उधर लखनऊ में अफरा तफरी मच गई थी। अनुपम की जान बच गई थी पर आरूषि के अचानक गायब हो जाने से पुलिस और पीजीआई प्रशासन हैरान परेशान था। सीसीटीवी कैमरों से फुटेज लेकर खोजबीन की जा रही थी। ऑटो वाले को तलाश लिया गया था पर स्टेशन के कुछ सीसीटीवी कैमरे खराब थे।आरूषि ने टिकट भी नहीं लिया था। कोई दुर्घटना की भी रिपोर्ट नहीं थी। उधर मम्मीजी और अनुपम को संभाला जा रहा था। अचानक आरूषि के गायब हो जाने को मीडिया और लोगों की नज़र में आने नहीं दिया गया।
शिवेंद्र और सौम्या बेहद परेशान थे। उनकी ज़िम्मेदारी और आरूषि का गायब होना मानसिक रूप से पीड़ा पहुंचा रहा था। परिजन भी अनुपम, मम्मीजी, उदयपुर और मुंबई में बंट गए थे।
उधर चुनाव सर पर होने से प्रशासन का अधिकांश समय वहां जा रहा था। धीरे धीरे सभी का ध्यान आरूषि से हटकर अनुपम और मम्मीजी पर आ गया था। पहले मम्मीजी को घर लाया गया। उन्हें आरूषि की अनुपस्थिति पर गहरा शक हुआ। अब उन्हें समझाने की सारी ज़िम्मेदारी उनके चचेरे बड़े भाई ने ली।
"सुषमा, थारे पर म्हाने घणों भरोसो है। पण आरूषि रो कईं हमचार कोनी। महे थारे सागे हा त अबार आरव और अनुपम र जीवण रो सोचजे !"
"बाईसा थे ही हिम्मत राख सको हो।" उनकी भाभी बोली।
मम्मी ने अपने जीवन में कठिन परिस्थितियों का सामना किया था। वे बिना शोरगुल सब समझ गई।
तीन महीने बाद अनुपम को भी छुट्टी दे दी गई। उसे भी सबने मिलकर आरूषि के बारे में बताया। उसे यकीन ही नहीं था पर न मानने से वास्तविकता बदला नहीं करती।
अब उसका मन लखनऊ से उचट गया था। उसने रिजाइन कर दिया पर अन्य उच्चाधिकारियों और सीएम ने स्वीकार नहीं किया और इस शर्त पर उसे राजी कर लिया कि अनुपम को उसके चाहे अनुसार पोस्टिंग दे दी जाए। उसे केंद्र सरकार को प्रतिनियुक्ति पर सौंप दिया गया। केंद्र सरकार ने उसे महाराष्ट्र सरकार को सौंपा। जिसने उसे महाराष्ट्र भंडारण निगम में सीईओ लगा कर मुंबई में ही रख दिया। अब अनुपम मां और अपने बच्चे के साथ उनकी खुशी के लिए जी रहा था।
इस सब में शिवेंद्र और सौम्या के भी दिल मिले पर उन्होंने इसे सौम्या के एमएस पूरा होने तक किसी को भी नहीं बताने का निर्णय लिया था। जीवन अपनी राह चल पड़ा था। पर कुछ जिंदगियां पूरी बदल गई और कुछ दिल में दर्द लेकर अपनी राह चल पड़ी।
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सैयद साहब उस लडकी को अपने घर बेहद प्यार से रखने लगे ।
कुछ दिन असमां (उनकी पत्नी) ने उसकी चुप्पी तोड़ने और ढंग से खिलाने का प्रयास किया पर शायद उस लडकी का गम बहुत भारी था।
"सुनिए, आप इसे अपने साथ ऑफिस क्यों नहीं ले जाते ? शायद बाहर जाकर यह भूल पाए अपने गम को। इसे ऐसे देखकर दिल बहुत दुखता है।"उन्होने कहा।
"हां आप ठीक कहती हैं। एक प्रयास यह भी कर लेते हैं।" वह सहमत हो गए।
रजा साहब उसे अपने साथ ले गए। लड़की बिना विरोध किए उनकी हर बात मान लेती थी। धीरे धीरे वह होटल के काम संभालने लगी पर बोलती किसी से नहीं थी। परिवार इतने से ही खुश था। सैयद साहब को भी हेल्प मिलने से उनका बोझ कम हो गया था। अख़्तर की चंचलता और उसका "आपा, आपा" करके आगे पीछे घूमना और अपनी सारी बातें शेयर करना उसके चेहरे पर कभी कभी हल्की स्मित ला देता था।
सैयद साहब के परिवार में उसकी जगह उनकी बेटी रुखसाना की तरह ही हो गई थी। वे सब अब उसे रुखसाना से मिलते नाम राधा से पुकारने लगे थे। पर अजब बात थी !! जब भी उसे इस नाम से पुकारते उसकी आंखों में नमी आ जाती थी।
सब आसान नहीं चल रहा था। कुछ लोगों को इस तरह किसी हिंदू लड़की को सैयद साहब के घर रहना चुभने लगा।
"सैयद साहब यह ठीक नहीं हो रहा है।" उनमें से एक ने उन्हें टोका।
"क्या ?" वे हैरत से उसे ताकने लगे।
"किसी काफ़िर..."
"अपनी ज़बान पर लगाम लगाइए मियां। आप मेरी बेटी की बात कर रहे हैं।"
"आप जैसे मोतबिर शख्स ऐसा करेगें तो अल्लाह रसूल को.....।
"आप बेफिक्र रहें मियां। अल्लाह को कयामत के दिन हिसाब देना है, तो हम उन्हें दे देंगे। यह हमारे और परवरदिगार के बीच का मसला है। आप नाहक परेशान हैं। और बात राधा की हमारे बिज़नेस संभालने की, तो मियां हमारे और हमारे दामादजी की सहमति से वो भी हिस्सेदार है इस बिजनेस में।"
सैयद साहब की फटकार ने सभी के मुंह बंद कर दिए।
राधा के देर रातों तक शिद्दत से काम करने और किसी से भी न बोलने के रवैये ने स्टॉफ और रजा साहब के बिज़नेस से राफ्ता रखने वाले हर बिजनेसमैन को सहमा रखा था। सब ईमानदारी से और समय से पहले काम तैयार रखने लगे। वह बेहद पर्दादारी से रहती थी तो उनके बीच कई किस्से थे उसके मिजाज़ को लेकर।
मगर कुल मिलाकर बिज़नेस चौगुनी तरक्की कर रहा था। सैयद साहब को भी सहारा मिल गया था तो वे बाहर भी ध्यान देने लगे। महीने भर में ही सारा परिवार राधा का मुतमइन हो चला था।
सैयद साहब का डॉक्टर रहमान से गहरा दोस्ताना था। वे उनसे गप्पें लड़ाने कई बार आ जाते। परिवारों में भी दोस्ती का अमल था। वह उनके फैमिली डॉक्टर भी थे और रूटीन चेकअप भी करते रहते थे।
राधा आज उठी नहीं थी। हमेशा अलसुबह उठ जाने वाली बेटी के न उठने से अस्मां बेगम परेशान हो उठी। उन्होंने डॉक्टर रहमान को फ़ोन कर दिया।
डॉक्टर ने आते ही चैकअप किया। उन्हें कुछ संदेह हुआ तो उन्होंने अपनी बेगम डॉक्टर सलमा को भी बुलवा लिया। अस्मां भी परेशान हो उठी।
"सलमा बेगम, कुछ तो बताईए !!"
"हम कुछ टेस्ट करवा रहे हैं। फिर देखते हैं, क्या नतीजा रहता है। आप इन्हें हॉस्पिटल ले आइए।"
उन्होंने राधा की एक न सुनी। हॉस्पिटल ले जाकर ही मानी। पर राधा के टेस्ट होते समय ही उसकी हालत खराब होने लगी।
"अम्मी हमें ले चलिए यहां से।"
राधा के शब्द आज सुने थे उन्होंने। अपनी बेटी को इस तरह परेशान देखकर वे तुरंत उसे ले आई। और सलमा को रिज़ल्ट फ़ोन पर बताने की ताकीद की।
राधा रुकी नहीं फिर और ऑफिस चली गई। उसे वहीं सुकून मिलता था।
"सुनिए, राधा का ध्यान रखिएगा। उसकी तबियत नासाज है। लगता है कि अस्पताल से एलर्जी है उसे। शायद वहीं कुछ हुआ हो।"
अपनी बेगम के फ़ोन ने रजा साहब को फिक्र में ला दिया। वे राधा के आस पास ही चक्कर काटते रहे। वहीं राधा फिर से फाइलों में गुम थी। कुछ नए एम्पलाइज के लिए इन्टरव्यू रखे गए थे। राधा इंटरव्यूज को चेयर करती थी पर कभी भी कोई प्रश्न नहीं करती थी। पर उसकी चुभती आंखे सामने वाले को असलियत सामने लाने पर मजबूर कर ही देती थी। उसने कई ख़राब परफॉर्मेंस वाले पुराने एम्प्लॉयज को हटाने में भी गुरेज़ नहीं किया था।सैयद साहब आज कई दिनों बाद ख़ुद ऑफिस पूरी तरह से संभाल रहे थे।
"बाजी, आपकी बेटी हमल से है।"
डॉक्टर सलमा के फ़ोन ने अस्मां बेगम की चिंता में इज़ाफा कर दिया।
"उसे ख़बर मत होने दीजिएगा।उसकी हालत देखकर लगता नहीं कि वह संभाल पाएगी।"
"तो अब क्या करना है ?"
"बस ध्यान ही रखिएगा और उसे अपने मन की करने दीजिएगा। और कुछ नहीं किया जा सकता है।"
"कितने महीने चढ़े हैं ?"
"बाज़ी 4 से कुछ ज्यादा हो सकते हैं फिर अल्ट्रा साउंड करवा लेती हूं।"
"आप मशीन घर ला सकती हैं ! वह हॉस्पिटल में बेहद परेशान हो गई थी।"
"बाज़ी कुछ इंतजाम देखती हूं।"
"कुछ भी करिए सलमा पर हम हॉस्पिटल नहीं लायेंगे उसे। अब जो भी है आपको ही संभालना होगा।"
"ठीक है बाज़ी"
सलमा भी उनकी बात से चिंतित थी। राधा की हालत में कुछ और किया भी नहीं जा सकता था।
उधर अस्मां के फ़ोन ने रजा साहब को पहले खुशी दी पर फिर परेशान कर दिया।"आप उसे कुछ न बताइएगा। अभी घर चले आइए। हम अख़्तर को भेजते हैं वहां।"
अख़्तर को पता लगा तो वह खुशी से झूम उठा। पर अम्मी ने उसे बेहद होशियार रहने की सख्त ताकीद की।
दोनों ने पहले खुद मसले को सुलझाने की कोशिश की फिर रुखसाना को भी फ़ोन कर दिया। रुखसाना और उसके पति भी खुश हुए और फिर वे भी बाकी सब जानकर चिंतित हो गए।
"अम्मी मैं रुखसाना को वहां भेज देता हूं। दिन में वह राधा बाज़ी के साथ रह लेगी और रात को अख़्तर को समझा कर उसके साथ के लिए बोल दीजिएगा।"
"राधा को उसका साथ पसंद है अम्मी तो वह उसे खुश भी रखेगा।"रुखसाना बोली।
"ठीक है सलमा को बताने दो फिर तुम्हारी एयर टिकिट्स करवा लेना।"
दूसरे दिन सलमा ने बहाने से राधा की यूएसजी कर ली। उसका संदेह यकीन में बदल गया।
सैयद साहब ने रुखसाना को मिलने का बहाना कर बुलवा लिया।
अब दिन को रुखसाना और रात को अख़्तर राधा का ख्याल रखने लगे। रुखसाना के रूप में एक सहेली मिल गई थी उसे तो अख़्तर की बातें उसके मन को आराम देती थी। अख़्तर उसका ध्यान रखते हुए काम भी जिम्मेदारी से सीखने लगा। सैयद साहब ख़ुद भी ध्यान रखते थे पर सब इस बात का पूरा ध्यान रखते कि राधा को शक न हो। राधा का स्वभाव कुछ चिड़चिड़ा भी हो गया था। उसका कोई ज्यादा ध्यान रखता तो वह अपने को कमरे में बंद कर लेती। समय गुजरने से राधा की प्रेगनेंसी भी सामने आ गई थी। अब तो राधा के मन का पता ही नहीं चलता था। बस अख़्तर की मासूम बातें उसे कुछ सुकून देती थी। डॉक्टर सलमा भी उसका समय समय पर चेकअप कर लेती थी।
किसी तरह समय गुजरा और राधा ने बेटे को जन्म दिया। परिवार बहुत खुश था। अख़्तर की तो जैसे लॉटरी लग गई थी। रुखसाना के बच्चों को वह खिला नहीं पाया था। अब वह सबसे अपने मामू बनने की खुशी बांट रहा था। राधा अब मजबूरन घर पर थी तो अख़्तर ने सब संभाल लिया था। सैयद साहब का परिवार उसके बर्ताव से दुगुनी खुशी महसूस कर रहा था। सैयद साहब को भी सहारा हो गया था।
राधा का बच्चा 3 माह का हो चला था। सब उसे अलग अलग नामों से पुकारते थे। रुखसाना भी लखनऊ लौट गई थी। सब बेहद खुश रहने लगे थे। राधा भी अब कभी कभी बोल लेती थी।
पर खुशियां कहां ज्यादा टिकती है !!!
अख़्तर एक दिन ऑफिस से लौट रहा था कि एक ट्रक ने उसकी कार को जोरदार टक्कर मार दी।
टक्कर की तेज आवाज से आस पास के लोग उधर दौड़ चले थे !!!
यह टक्कर जैसे सैयद साहब के परिवार को लगी थी।
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Aliya khan
30-Dec-2021 11:03 PM
ये सब क्या हो रहा है जिंदगी की राहों पर ओर क्या क्या झेलना होगा
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Ajay
30-Dec-2021 11:35 PM
कल का भी भाग जरूर पढ़िएगा बहिन। भाग्य नई सुबह बनाएगा।
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🤫
30-Dec-2021 11:00 PM
ओहो फिर एक नई परेशानी... देखते है आगे क्या होता है, कहानी तो इंट्रेस्टिंग बन रही है।
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Ajay
30-Dec-2021 11:34 PM
भाग्य है ये !! जितनी तेज़ी से ये बदलता है। इंसान तो खिलौना ही बन जाता है।🙏🏻🙏🏻
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